कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।  
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अन्तिम विजय हमारी है।

पुन: घिरे संकट के बादल,
इसीलिये मन भारी है;
किन्तु धर्मध्वज की छाया में
अन्तिम विजय हमारी है।
यही अटल विश्वास फूंकता
पुन: हिन्दु में नव उत्साह,
कुटिल कुलक्षित राष्ट्रद्रोहियों
से रण की तैयारी है॥
हिन्दु अस्मिता के गौरव पर,
जो प्रहार करते जाते;
राष्ट्र कल्पना से अनजाने,
गीत सैक्युलर हैं गाते।
जाति पंथ क्षेत्र मजहब में,
बांट दिये भारतवासी;
हिन्दु या भारत है केवल,
अब कुछ लोगों की थाती॥
एक विभाजन से अब,
करते दूजे की तैयारी है, किन्तु........।
है अपना भी दोष भुलाये,
हैं अपनी संस्कृति इतिहास,
हम संवेदनशून्य हो रहे,
जब होता अपना उपहास।
परकीयों ने नहीं निजों ने,
किया राम पर ही आक्षेप;
यही धर्मनिर्पेक्ष नीति है,
यही अशुभ इसका संकेत॥
धर्महीन होगा भारत तो,
अपनी जिम्मेदारी है, किन्तु.............।
हमने शंकर बन विष पीकर,
शिव बनकर कल्याण किया,
शरणागत पापी विद्रोही,
को भी अभय का दान दिया।
भूभागों पर नहीं मनों पर,
विजय प्राप्त करने वाले;
किन्तु नहीं काल से भी हम,
रण में हैं डरने वाले॥
हुए अचेतन तो समझो अब,
काल हमीं पर भारी है, किन्तु.......।

हमने कब विदेश में जाकर,
किसको दास बनाय है?
निज विचार विश्वास रोप कर,
किसका धर्म डिगाया है।
तो भी परकीयों ने आकर,
हाथ लिये नग्न तलवार;
काटे अगणित शीश हिन्दु के,
स्मरण रहे वह अत्याचार॥
अब भी पोप व जेहादी की,
वही कुटिलता जारी है, किन्तु.....।

गंगा को Ganges मन्दिर को,
बुतख़ाना कहने वालो,
छोड़ नेह आंग्ल उर्दू का,
निज भाषा को अपना लो।
दोनों पराधीनता की और्,
परकीयों की भाषा हैं;
उनका स्वार्थ सिद्ध हो तो हो,
अपने लिये निराशा हैं॥
निज संस्कृति व निज भाषा पर,
कुटिल आक्रमण जारी हैं, किन्तु........सौजन्य से ( डॉ. जय प्रकाश ) 
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जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

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आदमी हारा सा हैll

चहुंओर अंधेरा है,

आशंकाओं ने आघेरा हैl

कुछ्तो जतन कर ऐ प्राणी,

दूर जा बैठा सबेरा हैl

निराशाओं की खाई में,

एक जुगनू उजियारा सा हैl

आदमी हारा सा हैll

धीरज भी डिगने वाला है,

शायद वो फ़िर मेलने वाला हैl

युग बीता, सदियां बीतीं,

वो दूर कुछ किनारा सा हैl

आदमी हारा सा हैll

एक फ़िर वही कमी खल रही,

एक दूजे की आस पल रहीl

मायूसी ही थकान बन गई,

आम-आदमी की पहचान बन गईl

चलो उठो कुछ तुम चलो,

हर कोई बेबसी का मारा सा हैl

आदमी हारा सा हैll

वो देखो एक वीर उठ चला,

जिसने कदम बढाया पहलाl

मुसीबतों की आंधी फ़िर चलेंगी,

कमजोर दरख्त, फ़िर कुचलेंगीl

फ़लदार हो तो झुक जाना,

विपरीत बहाव हो तो रुक जानाl

रुककर फ़िर से चलते जाना है,

मंजिल को आखिर पाना हैl

जो साथ चला वो हमारा सा हैl

आदमी हारा सा हैll

आंधी को तो आना ही है,

समय मात्र बहाना ही हैl

हिम्मत जुटा परीक्षा की घडी है,

आगे मुसीबत और बडी हैl

जहां शक्ति, अभिमान वहां,

शक्तिहीन को उन्माद कहां?

आज फ़िर तुझे डिगाने आये,

पथभ्रष्ट, पथ बतलाने आयेl

हर तिनका लगे सहारा सा हैl

आदमी हारा सा हैll

अब तो तिमिर मिटाना होगा,

संघर्ष का बिगुल बजाना होगाl

हर सितम की इंतहा हो गई,

मानवता न जाने कहां खो गईl

हर रात के बाद सबेरा होगा,

जो आज तेरा है कल मेरा होगाl

लो फ़िर मिट्टी ने पुकारा सा हैl

आदमी हारा सा हैll
































 

ज़रा नज़रों को अपनी घुमाते तो रहिये
गली के मोड़ पर कहीं पीछे न रह जाये वो,
ज़रा नज़रों को अपनी घुमाते तो रहिये.
चाँद का क्या भरोसा, कब दिखे, कब बदली मै ढक जाये,
शमां सी लौ दिल मै जलाते ही रहिये.
वो भी बढ़ा देगा चार कदम राहों मै,
दो कदम अपने बढाकर तो चलिए.
ज़माने के शोर मै गूंजेंगी तुम्हारी आवाजें,
ख़ुशी से चंद लब्ज़ गुनगुना के तो कहिये.
मोम बनकर पिघल जायेगा हर पत्थर-दिल,
साज़-इ-दिल आप बजाते तो रहिये.
शाम तक मिल ही जायेंगे सातों आसमान,
वो पतंग कामनाओं की उडाते तो रहिये.
क्या खोया है आपने वो पाएंगे ज़रूर,
ज़मीर अपना जगा के तो रखिये.
खिल उठता है एक गुल आपकी तबस्सुम से,
चमन की ही खातिर मुस्कुराते तो रहिये.
बहुत पेचीदा है ये,मैं न हल कर पाउँगा,दुनिया-दारी,
वक़्त-बेवक्त हमें भरोसा दिलाते तो रहिये..........................{unknown}
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मै पंछी विशाल नील गगन का
मै पंछी विशाल नील गगन का
मुझे आज इसमे समा जाने दो
आज मन सागर के भाव को फुट फुट कर
किरण की भाती इस गगन मै बहे जाने दो

दूर कही है कोई मुझे पुकार रहा
ऐसा सोचते हुए मुझे उड़ जाने दो
आज खोल दो इस पिंजरे की ताली
विशाल नील गगन की सैर पैर जाने दो

मै पंछी विशाल नील गगन का
ज्ञान अज्ञान की परिभाषा से परे
मालूम है तो सिर्फ एक प्रेम भाषा
आज मुझे फिर हवा पै सवार हो जाने दो

नफ़रत की भाषा का यह कैसा स्वरूप ?
मुझे न तुम लोग इसमे घसीट डालो
सोचने को है और भी बहुत बातें,लेकिन
मुझे आज इस आसमान मै खो जाने दो

मै पंछी विशाल नील गगन का
मुझे आज सिर्फ उड़ जाने दो
असीमित है मेरा मन का बल
मरने से पहले एक बार जी जाने दो ...................[UNKNOWN]
 
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शहर की इस दौङ मे दौङ के करना क्या है?
शहर की इस दौङ मे दौङ के करना क्या है? जब यही जीना है दोस्तो तो फिर मरना क्या है?

पहली बरिश मे ट्रैन लेट होने की फ़िक्र है भूल गये भीग्ते हुए टहलना क्या है?

सीरिअल्स् के किरदारो का सारा हाल है मालूम पर मा का हाल पुछ्ने की फ़ुर्सत कहा है?

अब रेत पे नन्गे पाव टहल्ते क्यू नही? 108 है चैनल फिर दिल बहल्ते क्यू नही?

इन्टरनेट से दुनिया के तो टच् मे है, लेकिन पङोस मे कौन रहता है जान्ते तक नही.
मोबाइल, ळैन्डलाईन सब की भरमार है, ळेकिन जिगरी दोस्त तक पहुचे ऐसी तार कहा है?

कब डुबते हुए सुरज को देखा था, याद् है? कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?

तो दोस्तो शहर की इस दौड् मे दौड् के करना क्या है जब यही जीना है तो फिर् मरना क्या है?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा

कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा

किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा

और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा

अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल
पर उम्मीद है कि दूसरी ओर ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा
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हिंदी 
अरबी और फारसी के मिटाये वो मिटी नाहिं |
गरल अंग्रेजी पी आज वह जिन्दी है ||
कन्नड़ मलयालम , तमिल तेलगु , रज | 
बहुत उछारी तऊ दिसत अमंदी है ||
उर्दू बनी सौत सी फाटौ हियो फटौ नाहिं |
सभी मिली सराही जो कारज करिंदी है ||
रहेगौ सुहाग मान 'शंकर' पुकार कहै |
भारत के भाल की बिंदी आज हिंदी है ||

(स्वo डॉ शंकर लाल चतुर्वेदी 'सुधाकर' द्वारा रचित ) 

 ब्रज भूमि 

जहां भोरी किशोरी नैन नचाय 
पट घूँघट में बतरावत हैं |छल छंद न फंद न द्वन्द कछु परदेसिन गोरस प्यावत हैं |धनि है ब्रज भूमि 'सुधाकर' हे प्रिय पाती परोसी पढ़ावत हैं |राधा को नाम रटे रसना जहां मोहन मोहन गावत है |

जहां अंधरे सूर की बीना बजै , गूंजती रहे रसखान की बानी |जहां घुँघरू बांध के मीरा नची,ताज सी सुगावत ही मुगलानी |घनानंद सुजान कौ प्रेम पलै,नागरी दास तजि रजधानी |हरीदास 'सुधाकर' बिहारी रटे ,ब्रजभूमि वही मंजुल सुखदानी |

(स्वo डॉ शंकर लाल चतुर्वेदी 'सुधाकर' द्वारा रचित ) 

 जहाँ पाती पिया की पड़ोसी पढ़ै, जहाँ गारी बिना कछु बात नहीं

मन मैल नहीं है, दुराव नहीं, नहीं दंभ है, पीठ पे घात नहीं

जहाँ खेलन में न गुसाईं कौउ, रस-झेलन में सकुचात नहीं

जहाँ सांवरे कौ रंग ऐसो चढ़यौ, रंग दूसरौ और सुहात नहीं

 

हिंदी 
अरबी और फारसी के मिटाये वो मिटी नाहिं |

गरल अंग्रेजी पी आज वह जिन्दी है ||

कन्नड़ मलयालम , तमिल तेलगु ,रज |

बहुत उछारी तऊ दिसत अमंदी है ||

उर्दू बनी सौत सी फाटौ हियो फटौ नाहिं |

सभी मिली सराही जो कारज करिंदी है ||

रहेगौ सुहाग मान 'शंकर' पुकार कहै |

भारत के भाल की बिंदी आज हिंदी है ||

(स्वo डॉ शंकर लाल चतुर्वेदी 'सुधाकर' द्वारा रचित )


 सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।

यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

 


यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदम्ब की डाली

तुम्हे नहीं कुछ कहता, पर मै चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वही बैठ फिर बड़े मजे से मै बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हे बुलाता

सुन मेरी बंसी माँ, तुम कितना खुश हो जाती
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आती
तुमको आती देख, बांसुरी रख मै चुप हो जाता
एक बार माँ कह, पत्तो में धीरे से छिप जाता

तुम हो चकित देखती, चारो ओर ना मुझको पाती
व्याकुल-सी हो तब कदम्ब के नीचे तक आ जाती
पत्तो का मरमर स्वर सुन, जब ऊपर आँख उठाती
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितना घबरा जाती

गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती नीचे आ जा
पर जब मै ना उतरता, हंसकर कहती मून्ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्हे मिठाई दूंगी
नए खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी

मै हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वही कही पत्तो में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मै ना उतारकर आता
माँ, तब माँ का ह्रदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैलाकर अम्मा, वही पेड़ के नीचे
ईश्वर से विनती करती, बैठी आँखे मीचे
तुम्हे ध्यान में लगी देख मै, धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे आँचल के नीचे छिप जाता

तुब घबराकर आँख खोलती और माँ खुश हो जाती
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे

सुभद्रा कुमारी चौहान






































































































 

अगर हिचकी आए तो माफ़ करना
नैनो मे बसे है ज़रा याद रखना,
अगर काम पड़े तो याद करना,
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.......

ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है .......


एक मुलाक़ात करो हमसे इनायत समझकर,
हर चीज़ का हिसाब देंगे क़यामत समझकर,
मेरी दोस्ती पे कभी शक ना करना,
हम दोस्ती भी करते है इबादत समझकर.........


ख़ामोशियों की वो धीमी सी आवाज़ है ,
तन्हाइयों मे वो एक गहरा राज़ है ,
मिलते नही है सबको ऐसे दोस्त ,
आप जो मिले हो हमे ख़ुद पे नाज़ है
 
 
 
 
 *****************************
आदमी हर हाल में ज़िन्दा रहेगा
मुश्किलों से जूझता लड़ता रहेगा

आदमी हर हाल में ज़िन्दा रहेगा।


मंज़िलें फिर–फिर पुकारेंगी उसे ही

मंज़िलों की ओर जो बढ़ता रहेगा।


आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले

पर दिये का भी सफर चलता रहेगा।


कल भी सब कुछ तो नहीं इतना बुरा था

और कल भी सब नहीं अच्छा रहेगा।


झूठ अपना रंग बदलेगा किसी दिन

सच मगर फिर भी खरा–सच्चा रहेगा।


देखने में झूठ का भी लग रहा है

बोलबाला अन्ततः सच का रहेगा।

 ******************************

दोस्ती

खामोशी में हमे हर अदा प्यारी लगी,
आपकी दोस्ती हमे सबसे न्यारी लगी,
खुदा से दुआ है न टूटे ये दोस्ती,
क्योंकि ज़हां में यही चीज़ है जो हमे हमारी लगी........

दोस्ती के वादे को यूँही निभाते रहेंगे
हम हर वक़्त आप को सताते रहेंगे
मर भी जाएं तो कोई गम न करना
हम आंशु बनकर आपकी आँखों में आते रहेंगे...........


रब से आपकी ख़ुशी मांगते हैं
दुआओं में आपकी हंसी मांगते हैं
सोचते हैं क्या मांगे आपसे?
चलो आपकी उम्र भर की दोस्ती मांगते हैं.............
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
*****************************
आज मानव का सुनहला प्रात है
आज मानव का सुनहला प्रात है,
आज विस्मृत का मृदुल आघात है;
आज अलसित और मादकता-भरे,
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;

मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।

आज सौरभ में भरा उच्छ्‌वास है,
आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;
आज शतदल पर मुदित सा झूलता,
कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;

लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
आज मिल लो, मान करना छोड दो ।

आज मधुकर कर रहा मधुपान है,
आज कलिका दे रही रसदान है;
आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
कोकिला करती प्रणय का गान है;

यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।
****************************** 

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल है
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ कब हारा?

क्षमाशील हो ॠपु-सक्षम
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल है
उसका क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत सरल है

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिंधु किनारे
बैठे पढते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे प्यारे

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नही सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से

सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता गृहण की
बंधा मूढ़ बन्धन में

सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधिवचन सम्पूज्य उसीका
जिसमे शक्ति विजय की

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है  

 

मोहनी-स्वरूप

आँखनि की कजरारी कटारि पै, घूँघट ढाँकि करी चतुराई l
फूलन कंचुकी धारि हिये, अरू सारी पराग के पुष्प जड़ाई l
छीन-कटि पै पलाश के बंध, औ पैजनि साजि, चली इतराई l
शंभु कौ योग डिगायौ तबै, जब मोहन मोहनियाँ बनि आई ll
-ब्रजेश

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मथुरा चौवे महिमा 

(कबिबर श्री बालमुकुन्द चतुर्वेदी)

होआ जी से मल्ल सुठाराम जी से द्रड ब्रती, 
देव जी से साहसी बडायो जस भारी हे !
उदद्दू उजागर वेद मूर्ति विश्व वंघ भये,
छीत स्वामी सेवा की सरस रीति पारी हे !
मुदित मुकुन्द दिव्य गायक जेसे, 
काव्य की कला में जग विदित बिहारी हे !
सुदन समान वीर काव्य कए प्रेनेता भये, 
एसे रत्न की खान मुथुरा हमारी !

नाना मारतंड तीन लोक में प्रकाश करे,
मामा धर्मराज जग शासनाधिकारी हे !
मोसी भागीरथी सो अधम उधारनी हे, 
ननसाल उतम हिमाचल सुरबारी हे !S
मुड़ती मुकुंद शट बदन गनेश ईस,
बरुण कुबेर इन्द्र देवतंन ते यारी हे !
माल कए चखेया गिरिराज के सखा हे हम,
माथुर मुनीस माता यमुना हमारी हे !



**************************************************


यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदम्ब की डाली

तुम्हे नहीं कुछ कहता, पर मै चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वही बैठ फिर बड़े मजे से मै बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हे बुलाता

सुन मेरी बंसी माँ, तुम कितना खुश हो जाती
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आती
तुमको आती देख, बांसुरी रख मै चुप हो जाता
एक बार माँ कह, पत्तो में धीरे से छिप जाता

तुम हो चकित देखती, चारो ओर ना मुझको पाती
व्याकुल-सी हो तब कदम्ब के नीचे तक आ जाती
पत्तो का मरमर स्वर सुन, जब ऊपर आँख उठाती
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितना घबरा जाती

गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती नीचे आ जा
पर जब मै ना उतरता, हंसकर कहती मून्ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्हे मिठाई दूंगी
नए खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी

मै हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वही कही पत्तो में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मै ना उतारकर आता
माँ, तब माँ का ह्रदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैलाकर अम्मा, वही पेड़ के नीचे
ईश्वर से विनती करती, बैठी आँखे मीचे
तुम्हे ध्यान में लगी देख मै, धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे आँचल के नीचे छिप जाता

तुब घबराकर आँख खोलती और माँ खुश हो जाती
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे

सुभद्रा कुमारी चौहान

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ठुकरा दो या प्यार करो

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं।
सेवा में बहुमुल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं॥

धूमधाम से साजबाज से वे मंदिर में आते हैं।
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं॥

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी।
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी॥

धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं।
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं॥

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं।
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं॥

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी।
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ! चली आयी॥

पूजा और पुजापा प्रभुवर! इसी पुजारिन को समझो।
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो॥

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ।
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ॥

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो॥

- सुभद्रा कुमारी चौहान





































































































 

















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