*निजी क्षेत्र की नौकरियाें में आरक्षण लागू करने में आ रही मुश्किलाें के मद्देनजर सरकार ने
उद्योग जगत से गरीब तबके के लिए पांच फीसदी कोटे पर विचार करने को कहा है। उद्योग
विभाग ने इस बारे में सीआईआई, फिक्की, एसोचैम को पत्र भेजकर उनकी राय मांगी है। सरकार
और चैंबराें के बीच अप्रैल में इस मुद्दे पर बैठक हुई थी।......(मेरा तो मानना है कि उद्योग जगत
को आरक्षण नहीं रखना चाहिए.सरकार उद्यमियों से गरीबों को ५% आरक्षण देने के लिए कह रही है
जब कि खुद जाति आधारित आरक्षण लागू करती है. इसका तो ये मतलब हुआ कि ये नेता भी
जानते हैं कि आरक्षण गरीबी देखकर दिया
जाना चाहिए न कि जाति देखकर)...........[लाख टके का एक सवाल ये है कि क्या सरकार
गरीबों का रोना रोने से पहले खुद गरीबों को ध्यान में रखकर गरीबों के लिए आरक्षण लागू
करेगी या जाति की राजनीती ही हिन्दुस्तानियों की नियति बनकर रहेगी ?]
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*अभी तक जाति-पाति को भूलकर एक समानता का पाठ पध्हाया जाता रहा है और इसको
अपनाने मै बीसियों साल निकल गए अब भी
कुछ एक जगह जाति-पाति और ऊँच-नीच का दानव कायम है जिसके आधार पर खून-खराबे
की आये दिन ख़बरें मिलती रहती हैं.
इसके बाद भी जो जाति-पाति भारत मै कम होने लगी हैं विकास के लिए गरीबों की गिनती
करना जरूरी है न की जातियों की फिर भी ये नेता लोग जाति के आधार पर जनगणना कराकर
सभी को ये जाति-पाति क्यों याद दिलाना चाहते हैं ?
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*The US has put up stiff conditions on the sale of F-16 fighter jets to Pak, stipulating
that they cannot be used against India in any future conflict.......(AND NOW WHY
SHOULD INDIA NOT SALE NUKE BOMB TECHNOLOGY TO IRAN, AFGHAN,
IRAQ, LANKA, NEPAL WITH THE SAME CONDITION THAT THEY CANNOT BE
USED AGAINST AMERICA ?)
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*ऐसा प्रतीत होता है कि मौजूदा सरकार धड़ल्ले से पैसा बटोरने में लगी है। सरकार को हिंदू
श्रद्धा स्थलों पर लिए जाने वाले टैक्स को तुरंत समाप्त करना चाहिए अन्यथा कल हर गली
कोने के मंदिर में देवी-देवताओं के दर्शन करने से पहले गरीब श्रद्धालुओं को टैक्स देना होगा।
सरकार को सभी संप्रदायों के लिए एक जैसी प्रणाली बनानी चाहिए ताकि किसी के दिल को
ठेस न लगे। उदाहरण के तौर पर हम अमरनाथ यात्रा को ही लें। यह कोई सरल यात्रा नहीं।
साथ ही साथ दर्शनार्थियों को अच्छा-खासा खर्चा भी झेलना पड़ता है। तमाम खर्चे के बाद भी
अगर अपने देवी-देवताओं को देखने के लिए कर अदा करना पड़ता है तो इससे अधिक
शर्मिदगी वाली कोई बात नहीं होगी।
यदि हम कैलाश-मानसरोवर यात्रा की बात करें तो पता चलेगा कि यह तो उससे भी अधिक
कठिन है। यहा पर चीन की सीमा होने के कारण और भी अधिक कठिनाइया श्रद्धालुओं को झेलनी
पड़ती हैं। ऐसे ही वैष्णो देवी यात्रा का भी मामला है। एक ओर तो सरकार हिंदू श्रद्धालुओं पर
विभिन्न प्रकार के टैक्स ठोंक रही है तो दूसरी ओर हज यात्रा पर जाने वाले मुस्लिम श्रद्धालुओं को
सब्सिडी प्रदान कर रही है। इस सब्सिडी पर भी सरकार ने दस हजार रुपये का खर्च और बढ़ा
दिया है। शायद कुछ इसी प्रकार की सब्सिडी ननकाना साहब, लाहौर जाने वाले सिखों को भी
प्रदान की जाती है। यहा यह सवाल उठता है कि सरकार दोहरे मापदंड क्यों अपना रही है? धार्मिक
यात्राओं के मामले में बहुत अच्छी बात है कि मुस्लिमों एवं सिखों को कुछ आर्थिक सहयोग
सरकार प्रदान कर रही है, मगर क्या हिंदू श्रद्धालु उसकी निगाहों से गिर गए हैं? क्या हिन्दु विरोधी
होने से ही कोई सरकार सेकुलर कहलाती है ?
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*महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री रमेश बागवे के खिलाफ पुणे में गंभीर किस्म के 19 अपराध दर्ज हैं।
इस खबर से कांग्रेस हरकत में आ गई है। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को मामले में
सत्यता का पता लगाने को कहा है जबकि अधिकारियों ने इसी वजह से उनके पासपोर्ट का
नवीनीकरण रोक दिया है।
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*एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में पैसा लेकर दंगे करने की बात स्वीकार करने वाले कर्नाटक
के कट्टरपंथी संगठन श्रीराम सेना के अध्यक्ष प्रमोद मुतालिक और उसके दो अन्य साथियों की
योजना महाराष्ट्र की सेनाओं की तरह कर्नाटक पर राज करने की रही है। लिहाजा जो कुछ
शिवसेना महाराष्ट्र में करती है, मुतालिक की श्रीराम सेना न केवल उसका अनुसरण करती है
बल्कि शिवसेना से दो कदम आगे बढ़कर काम करती है।
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*भारत का विकास: विकास कहने मै बड़ा आसान लगता है कि विकास हो रहा है, महगाई कम हुई
या विकास दर इतनी रहेगी. लेकिन ज़मीनी हकीकत ये है कि ये विकास सिर्फ मुट्ठी भर लोगों का
विकास है जिसे "भारत का विकास" नाम दिया जाता है.
सतही तौर पर देखें तो आज भी एक करोड़ से ज्यादा जनता गरीबी की रेखा से नीचे गुजर बसर कर
रही है. यह सिर्फ आंकडा नहीं है इसकी हकीकत को समझना है तो उस गरीब की सोचकर देखो जो
रात को भूके पेट सोता है, सुबह काम की खोज मै निकलता है और उसके बाद भी उसे ये भरोसा नहीं
होता कि उसे रोटी नसीब होगी या नहीं या उसे आज फिर खाली पेट सोना होगा. जबकि यहाँ विकास
के बड़े-बड़े वादे किये जाते हैं.
मध्यम वर्गीय लोगों को ही लेलें इनके लिए सरकार ६२ सालों मै भी साफ पानी और बिजली की
व्यवस्था नहीं कर पाई, रहने के लिए सबको घर नहीं दे पाई, इनकी बेरोजगारी पर लगाम नहीं
लगा सकी और बातें चाँद और मंगल पर पहुँचने की करते हैं जिन्हें शेखचिल्ली से और बेहतर
संज्ञा नहीं दी जा सकती है. पहले इन मूलभूत समस्याओं पर ध्यान देना होगा. अगर इसके लिए
ठोस उपाय किये गए तो मै ये साफ कह सकता हूँ कि बाकी समस्याएं खुद-ब-खुद अपना आकार
सिकोड़ना शुरू कर देंगी.
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*जिस जिन्ना की तारीफ़ करते हमारे नेतागण नहीं थक रहे हैं उस जिन्ना के आख़िरी दिन बुरी
अवस्था मै गुजरे. एक नए देश की हजारों समस्याएँ उनके सामने थीं, जिन्हें उनकी पार्टी और
प्रशासन के लोग ठीक से अंजाम नहीं दे रहे थे. केंद्रीय केबिनेट और राज्यों मै खींचातानी शुरू हो गई
थी. बेबसी के आलम मै जिन्ना ने वह सारी टूटी-फूटी अव्यवस्था देखी. वह सब देखकर तंग आ चुके
थे. शायद इसीलिये उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू को सन्देश भेजा था कि वे अपनी जिन्दगी के
अंतिम दिन मुंबई मै मलाबार हिल के अपने बंगले मै बिताना चाहते हैं.
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*बाल श्रमिक - बाल श्रमिकों को पकड़कर, उन्हें मुक्त कराकर या उनके नियोक्ताओं को सजा
दिलाकर कुछ हाथ लगने वाला नहीं है. अगर सरकार को उनकी भलाई ही करनी है तो उनकी रोजी
रोटी की व्यवस्था करनी होगी, उन्हें स्कूल भेजना सुनिश्चित करना होगा तभी ये माना जायेगा कि
सरकार को बाल श्रमिकों की भलाई की चिंता है. अन्यथा उनकी रोजी-रोटी छीनकर सरकार उनका
भला नहीं कर रही बल्कि ये उन मासूमों पर ज़ुल्म है. सो आइन्दा अधिकारी अपनी पीठ ना
थपथपाएं बल्कि शर्म करें.
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*चांदी के वरक में विषैले और आपत्तिजनक पदार्थ मिलाए जा रहे हैं. यह खुलासा भारतीय विष
विज्ञान अनुसंधान संस्थान ने किया है. एल्युमिनियम, निकेल, क्रोमियम, लेड, कैडियम, मैग्नीज
जैसी शरीर के लिए घातक धातुओं का प्रयोग इन दिनों चांदी के वरक बनाने में किया जा रहा है.
नकली चांदी के वरक से सजी मिठाई और अन्य खाद्य सामग्री के निरंतर प्रयोग से लोग
न्यूरोलॉजिकल, गुर्दा, कैंसर एवं मानसिक रोगों की गिरफ्त में आ रहे हैं. मिलावट रोकने के लिए
सरकार की तरफ से अभी तक कोई मानक निर्धारित नहीं हो सका है. भारतीय विष विज्ञान
अनुसंधान संस्थान ने आठ विभिन्न क्षेत्रों से चांदी के वर्क के 180 नमूने लिए, जिनका परीक्षण
संस्थान की प्रयोगशाला में किया गया. परीक्षण में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि 17
नमूनों में चांदी की मात्रा लेशमात्र नहीं थी, जबकि 87 नमूनों में घातक तत्व मिले.
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मुकुल दास ने बताया कि हमने जब चांदी के नमूनों का परीक्षण
किया तो उसमें शरीर के लिए बेहद खतरनाक तत्व मौजूद थे. 55 प्रतिशत चांदी के वरक में
निकेल, 54 प्रतिशत वरक में क्रोमियम एवं लेड जैसे विषैले तत्व पाए गए. वरक के नमूनों में
28 प्रतिशत कैडियम, सात प्रतिशत मैग्नीज पाया गया. भारतीय खाद्य अपमिश्रण निरोधक
अधिनियम 1951 केवल खाद्य श्रेणी वाले चांदी के वरक की अनुमति देता है, जो 99.9 प्रतिशत
शुद्ध हों. इस तरह कानूनन चांदी के शुद्धता मानक पर एक हजार पीपीएम की गुंजाइश है,
जिसके चलते चांदी के वरक में सहधातु या विषैले तत्वों की मिलावट को बढ़ावा मिल रहा है.
डॉ. मुकुल दास ने बताया कि आम जनता की स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा के मद्देनजर खाद्ययुक्त
चांदी में विषैली धातुओं की मिलावट रोकी जाए. भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान ने
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडड्र्स से बात की है. अभी इस विषय पर विचार किया जा रहा है और
जल्द ही इसके लिए मानक निर्धारित कर दिए जाएंगे.
खतरनाक बीमारियों की खान
डॉ. दास कहते हैं कि खाद्य सामग्री के रूप में लेड, क्रोमियम, निकेल, कैडियम एवं मैग्नीज
का इस्तेमाल कई खतरनाक बीमारियों की तरफ ले जा सकता है.
लेड: यह बच्चों के लिए सबसे घातक है. इससे बच्चों के मानसिक विकास पर काफी असर
पड़ता है. इसके अलावा स्मरण शक्ति पर भी इसका बहुत फर्क पड़ता है. बच्चे पागलपन के
शिकार भी हो सकते हैं. चांदी के वरक में इसकी बहुत मात्रा पाई जाती है, जो कैंसर का रोगी
बना सकती है.
कैडियम: किडनी पर इसका जबरदस्त असर पड़ता है. किडनी संबंधी रोग हो सकते हैं और
किडनी के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है.
एल्युमिनियम: खाद्य सामग्री में इस धातु के मिश्रण से न्यूरोलॉजिकल बीमारियां होने की
आशंका बढ़ जाती है. एल्जाइमर्स रोग होने का खतरा रहता है.
असली चांदी के वरक की पहचान कैसे करें
चांदी के वरक को हाथ में रखकर रगड़ने से यदि वह गायब हो जाए तो इसका मतलब है कि वह
उत्तम श्रेणी का है. उत्तम श्रेणी का चांदी का वरक लाभप्रद होता है. चांदी से शरीर में रोगों से
लड़ने की क्षमता उत्पन्न होती है, लेकिन यह तभी संभव है, जब हम उत्तम श्रेणी के चांदी के
वरक का सेवन करेंगे. भारत में चांदी के वरक का प्रयोग विभिन्न प्रकार की मिठाइयों, खीर,
हलुआ, सेवई एवं मुगलई पकवान में किया जाता है. इसके अलावा खाना खाने के बाद माउथ
फ्रेशनर, जैसे चांदी के वरक से लिपटी मीठी सुपारी, छुहारा, सौंफ, इलायची, तंबाकू एवं पान को
चांदी के वरक से सजाया जाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, खानपान में इस्तेमाल के लिए देश में
प्रति वर्ष दो लाख 75 हजार किलो शुद्ध चांदी को वरक में परिवर्तित कर दिया जाता है. चांदी के
वरक को तैयार करने में अखबारी कागज या छपे हुए कागज का प्रयोग खतरनाक है. इसलिए
इसे सफेद एवं स्वच्छ पेपरशीट के भीतर रखना चाहिए.
बकरे की खाल में बनता है वरक
चांदी का वरक बनाना लखनऊ के सबसे पुराने कारोबारों में शुमार है. ऐसा माना जाता है कि
लगभग 800 वर्ष पहले यह कला लखनऊ आई थी. नवाब वाजिद अली शाह के समय में यह
कला अपने चरम पर थी. चांदी के वरक का इस्तेमाल शुरू में आयुर्वेदिक दवाइयों के लिए किया
जाता था और इसका पूरा श्रेय हकीम रुकमाल को जाता है. चांदी के वरक के साथ मुहम्मद
हुसैन का नाम बड़े ही गर्व से लिया जाता है. हुसैन लखनऊ के पहले कारीगर थे. चांदी के वरक
को तैयार करने के लिए चांदी के पतले रोल, जो बनारस से आते हैं, के छोटे टुकड़े काटकर उसे
चमड़े से लपेट कर हथौड़े से तब तक पीटा जाता है, जब तक वह अपना सही आकार ग्रहण न
कर ले. इस काम में 3-4 घंटे लगते हैं. चांदी का वरक तैयार करने में सबसे अहम भूमिका
औजार की होती है. यह किसी पत्थर या लकड़ी का बना हुआ नहीं होता, बल्कि एक समय यह
हिरन की आंत से तैयार किया जाता था, लेकिन बाद में उस पर रोक लग गई और उसकी जगह
बकरे की खाल का प्रयोग होने लगा. बकरे की खाल से झिल्ली उतार कर उसे दवाइयों से साफ
किया जाता है और फिर उसमें लौंग, इलायची एवं जाफरान जैसे 350 मसालों का घोल डाल कर
सुखाया जाता है. इतने मिश्रण से तैयार हुए इस औजार की कीमत 3500 रुपये पड़ती है और
यह केवल तीन-चार महीने ही चल पाता हैl
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*मुजफ्फरपुर--- सकरा प्रखंड की बरियारपुर पंचायत के बरियारपुर गाव में कुंद होने के कगार पर
हैं दो विलक्षण प्रतिभाएं। जी हा, विलक्षण प्रतिभाएं। ठीक गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह और
तथागत अवतार तुलसी जैसी प्रतिभाएं। दोनों भाई-बहन हैं। नाम हैं भास्कर और दिव्याणी, उम्र
क्रमश: दस और ग्यारह वर्ष। इसे कुदरत का करिश्मा कहिए या कुछ और, दोनों गणित के बड़े और
कठिन सवालों को खेल की तरह हल करते हैं।
जानकर हैरानी होगी कि इतनी कम उम्र के ये बच्चे एमएससी और आईआईटी तक के भौतिकी
विज्ञान व गणित से संबंध कैलकुलश के कठिन से कठिन सवालों को पलक झपकते हल कर
देते हैं। आरएस अग्रवाल की 11वीं की गणित की पुस्तक हो या एनसीईआरटी की, टू-गेदर बिद
हो या केसी सिन्हा की बारहवीं की गणित की पुस्तक, टाटा माईग्रो हिल मैथमेटिक्स फार
आईआईटी व जेई हो या जीएन बर्मन मैथ व आइ ए मैरून मैथ की किताब ं हो, कोई ऐसा
सवाल नहीं है, जिसे वे हल नहीं कर पाते हों। कोटा आईआईटी के सिलेबस भी वे साल्व कर चुके हैं।
दुर्दशा देखिए, ये बच्चे किसी स्कूल के छात्र नहीं हैं। उनके माता-पिता ने अपनी हैसियत के
मुताबिक 2005 में गाव के ही झोपड़पट्टी में चल रहे एक निजी विद्यालय विद्या निकंज में
उनका दाखिला कराया था।
विद्यालय प्रबंधन ने दिव्याणी को तीसरी और भास्कर को दूसरी कक्षा में शामिल किया। वहा वे
छह महीने ही जा पाए। कारण, जो पढ़ाया जा रहा था, उनके पास उससे बहुत आगे का ज्ञान था।
उन्होंने खुद ही स्कूल जाना छोड़ दिया। सुदूर गाव के खपरैल मकान और झोपड़ी में ही इनकी
पूरी दुनिया है। भाई-बहन करीब 18 घटे गणित और भौतिकी की किताबों से खेलते हैं। पिता
अरविंद कुमार पाठक किसान हैं और माता सरिता आगनवाड़ी सेविका। इनकी कुल चार संतानें
हैं। सबसे बड़ी बहन कल्याणी और सबसे छोटी जागृति है। कल्याणी भी स्कूल नहीं जाती, लेकिन
मैट्रिक की तैयारी कर रही है। गरीबी के कारण उसका स्कूल में दाखिला नहीं हो पाया। छोटी
बहन जागृति गाव के एक स्कूल में पढ़ती है।
भास्कर और दिव्याणी के चाचा उदय पाठक पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं, पर उन्होंने दोनों प्रतिभावान
बच्चों के लिए किताबों की व्यवस्था कराई है। कैलकुलश के सवाल हल करने के अलावा उन्हें
और किसी भी काम में रुचि ही नहीं है। बताते हैं कि बच्चे दो साल पहले तक बैडमिंटन खेला
करते थे, पर अब उधर भी ध्यान नहीं देते। पढ़ाई और गणित के सवालों को हल करने में रमे
रहते हैं।
16 अप्रैल 2008 को तथागत अवतार तुलसी भी भास्कर और दिव्याणी से मिल चुके हैं।
मुजफ्फरपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी विपिन कुमार, तत्कालीन डीआईजी अरविंद पाडेय,
तत्कालीन एसडीओ-पूर्वी कुमार रवि मिलकर इन बच्चों का टेस्ट ले चुके हैं। कुमार रवि ने तो
इन बच्चों को जबानी सवाल बताया था और उन्होंने पलक झपकते उसक हल बता दिया था।
तथागत को बच्चों से मिलवाने में डीआईजी पाडेय ने पहल की थी। तथागत के सवालों का भी
उन्होंने सफलतापूर्वक जवाब दिया था। डीएम विपिन कुमार ने बच्चों के भविष्य के लिए राज्य
सरकार से लेकर आईआईटी संस्थानों व नासा तक को पत्र लिखने का आश्वासन दिया था। पर,
बच्चे आज भी गाव की झोपड़ी में ही पड़े हैं। इन्हें आगे कैसे अवसर उपलब्ध कराया जाए और
यह कराएगा कौन, यह बड़ा सवाल बना है।
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*क्या हिंदी मैं शपथ लेने से रोकना राष्ट्र भाषा हिंदी का अपमान नहीं है ?
तो अभी तक इनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं ?
राष्ट्र भाषा का अपमान राष्ट्र का अपमान !
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*महाराष्ट्र सरकार के फ़ैसले के मुताबिक नए परमिट के लिए न केवल लोगों को राज्य में
15 साल के अपने निवास का प्रमाण देना होगा बल्कि मराठी की जानकारी भी साबित करनी होगी.
मुंबई के लगभग 90 हज़ार टैक्सी चालकों में से अधिकतर मराठी इसलिए नहीं जानते हैं क्योंकि
वे मूलत: उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों से आए हैं.इस फ़ैसले के बाद टैक्सी चालकों में
खलबली मच गई है.
आपको क्या लगता है कि ये फ़ैसला सही है? क्या भाषा के आधार पर रोज़गार के अवसर प्रदान
करना जायज़ है?
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जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धी है प्रसन्नता.
बहुत से लोग बहुत कुछ पाकर भी प्रसन्न नहीं हैं, बहुतसे कुछ पाकर ही प्रसन्न हैं.
बहुमत की वाणी न्याय का प्रमाण नहीं है.---शिलर.
जब तक मन नहीं मरता माया नहीं मरती.---गुरुनानक.
सज्जन अपने चारित्र्य से ही विभूषित होते हैं.....वाल्मीकि.
पानी मै तेल, सत्पात्र मै दान और विद्वान मै शास्त्र का उपदेश थोडा भी हो, तो स्वयं फ़ैल जाता है.....चाणक्य.
न शत्रु न शास्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं.
जितनी कड़वी वाणी......णितिविदाषाश्तिका.
A mother is a mother still, The holiest thing alive......SAMUEL TAYLOR COLERIDGE.
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SWISS BANK:
Latest update after Swiss Bank has agreed to disclose the funds &
Our Indians' Money - 70, 00,000 Crores Rupees In Swiss Bank
1) Yes, 70 lakhs crores rupees of India are lying in Switzerland banks. This is the highest amount lying
outside any country, from amongst 180 countries of the world, as if India is the champion of Black Money.
2) Swiss Government has officially written to Indian Government that they are willing to inform the
details of
holders of 70 lakh crore rupees in their Banks, if Indian Government officially asks them.
3) On 22-5-08, this news has already been published in The Times of India and other Newspapers
based on
Swiss Government's official letter to Indian Government.
4) But the Indian Government has not sent any official enquiry to Switzerland for details of money
which has been sent outside India between 1947 to 2008.. The opposition party is also equally not
interested in doing so because most of the amount is owned by politicians and it is every Indian's money.
5) This money belongs to our country. From these funds we can repay 13 times of our country's
foreign debt. The interest alone can take care of the Centers yearly budget. People need not pay any
taxes and we can pay
Rs. 1 lakh to each of 45 crore poor families.
6) Let us imagine, if Swiss Bank is holding Rs. 70 lakh Crores, then how much money is lying in other
69 Banks?
How much they have deprived the Indian people? Just think, if the Account holder dies, the bank
becomes the owner of the funds in his account.
7) Are these people totally ignorant about the philosophy of Karma? What will this ill-gotten wealth do
to them and their families when they own/use such money, generated out of corruption and exploitation?
8) Indian people have read and have known about these facts. But the helpless people have neither
time nor inclination to do anything in the matter. This is like "a new freedom struggle" and we will have
to fight this.
9) This money is the result of our sweat and blood.. The wealth generated and earned after putting in
lots of mental and physical efforts by Indian people must be brought back to our country.
10) As a service to our motherland and your contribution to this struggle, please circulate at least 10
copies of this note amongst your friends and relatives and convert it into a mass movement.
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