फूलन की बाजूबंद फूलन की माला,
गैया चराय घर आये नंदलाला !
**!! गऊ चारन की हार्दिक शुभकामनायें !!**


SHRI SHRI JI DARBAR 

 SHRI  TATIYA-STHAN   KE BABA                  MAHARAJ

SHRI SHRI JI YANTRA 

SHRI           GOPAL    PEETHHADHEESH 

 

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 MATHURA THROUGH MAP

 

 DWARIKA THROUGH MAP

  मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। एक लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास,संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास,स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद,कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है।

मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर हैं- पूर्व में पिघलेश्वर का, दक्षिण में रंगेश्वर का और उत्तर में गोकर्णेश्वर का। चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण शिवजी को मथुरा का कोतवाल कहते हैं। वाराहजी की गली में नीलवारह और श्वेतवाराह के सुंदर विशाल मंदिर हैं। श्रीकृष्ण के प्रपौत्रवज्रनाभ ने श्री केशवदेवजी की मूर्ति स्थापित की थी पर औरंगजेब के काल में वह रजधाम में पधरा दी गई व औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ डाला और उसके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी। बाद में उस मस्जिद के पीछे नया केशवदेवजी का मंदिर बन गया है। प्राचीन केशव मंदिर के स्थान को केशवकटरा कहते हैं। खुदाई होने से यहाँ बहुत सी ऐतिहासिक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं।

पास ही एक कंकाली टीले पर कंकालीदेवी का मंदिर है। कंकाली टीले में भी अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। यह कंकाली वह बतलाई जाती है, जिसे देवकी की कन्या समझकर कंस ने मारना चाहा था पर वो उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई थी। मस्जिद से थोड़ा सा पीछे पोतराकुण्ड के पास भगवान्‌ श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, जिसमें वसुदेव तथा देवकी की मूर्तियाँ हैं, इस स्थान को मल्लपुरा कहते हैं। इसी स्थान में कंस के चाणूर, मुष्टिक, कूटशल, तोशल आदि प्रसिद्ध मल्ल रहा करते थे। नवीन स्थानों में सबसे श्रेष्ठ स्थान श्री पारखजी का बनवाया हुआ श्री द्वारकाधीश का मंदिर है। इसमें प्रसाद आदि का समुचित प्रबंध है। संस्कृत पाठशाला, आयुर्वेदिक तथा होमियोपैथिक लोकोपकारी विभाग भी हैं।

इस मंदिर के अलावा गोविंदजी का मंदिर, किशोरीरमणजी का मंदिर, वसुदेव घाट पर गोवर्द्धननाथजी का मंदिर, उदयपुर वाली रानी का मदनमोहनजी का मंदिर, विहारीजी का मंदिर, रायगढ़वासी रायसेठ का बनवाया हुआ मदनमोहनजी का मंदिर, उन्नाव की रानी श्यामकुंवरी का बनाया राधेश्यामजी का मंदिर, असकुण्डा घाट पर हनुमान्‌जी, नृसिंहजी, वाराहजी, गणेशजी के मंदिर आदि हैं, जिनमें कई का आय-व्यय बहुत है, प्रबंध अत्युत्तम है, साथ में पाठशाला आदि संस्थाएँ भी चल रही हैं। विश्राम घाट या विश्रान्त घाट एक बड़ा सुंदर स्थान है, मथुरा में यही प्रधान तीर्थ है। विश्रांतिक तीर्थ (विश्राम घाट) असिकुंडा तीर्थ (असकुंडा घाट) वैकुंठ तीर्थ, कालिंजर तीर्थ और चक्रतीर्थ नामक पांच प्रसिद्ध मंदिरों का वर्णन किया गया है । इस ग्रंथ में कालवेशिक, सोमदेव, कंबल और संबल, इन जैन साधुओं को मथुरा का बतलाया गया है । जब यहाँ एक बार घोर अकाल पड़ा था तब मथुरा के एक जैन नागरिक खंडी ने अनिवार्य रूप से जैन आगमों के पाठन की प्रथा चलाई थी ।

भगवान्‌ ने कंस वध के पश्चात्‌ यहीं विश्राम लिया था। नित्य प्रातः-सायं यहाँ यमुनाजी की आरती होती है, जिसकी शोभा दर्शनीय है। यहाँ किसी समय दतिया नरेश और काशी नरेश क्रमशः 81 मन और 3 मन सोने से तुले थे और फिर यह दोनों बार की तुलाओं का सोना व्रज में बांट दिया था। यहाँ मुरलीमनोहर, कृष्ण-बलदेव, अन्नपूर्णा, धर्मराज, गोवर्द्धननाथ आदि कई मंदिर हैं।

यहाँ चैत्र शु. 6 (यमुना-जाम-दिवस), यमद्वितीया तथा कार्तिक शु. 10 (कंस वध के बाद) को मेला लगता है। विश्रान्त से पीछे श्रीरामानुज सम्प्रदाय का नारायणजी का मंदिर, इसके पीछे पुराना गतश्रम नारायणजी का मंदिर, इसके आगे कंसखार हैं। सब्जी मंडी में पं. क्षेत्रपाल शर्मा का बनवाया घंटाघर है। पालीवाल बोहरों के बनवाए राधा-कृष्ण, दाऊजी, विजयगोविंद, गोवर्द्धननाथ के मंदिर हैं।

रामजीद्वारे में श्री रामजी का मंदिर है, वहीं अष्टभुजी श्री गोपालजी की मूर्ति है, जिसमें चौबीस अवतारों के दर्शन होते हैं। यहाँ रामनवमी को मेला होता है। यहाँ पर वज्रनाभ के स्थापित किए हुए ध्रुवजी के चरणचिह्न हैं। चौबच्चा में वीर भद्रेश्वर का मंदिर, लवणासुर को मारकर मथुरा की रक्षा करने वाले शत्रुघ्नजी का मंदिर, होली दरवाजे पर दाऊजी का मंदिर, डोरी बाजार में गोपीनाथजी का मंदिर है।

आगे चलकर दीर्घ विष्णुजी का मंदिर, बंगाली घाट पर श्री वल्लभ कुल के गुसाइयों के बड़े-छोटे दो मदनमोहनजी के और एक गोकुलेश का मंदिर है। नगर के बाहर ध्रुवजी का मंदिर, गऊ घाट पर प्राचीन विष्णुस्वामी सम्प्रदाय का श्री राधाविहारीजी का मंदिर, वैरागपुरा में प्राचीन विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के विरक्तों का मंदिर है। इससे आगे मथुरा के पश्चिम में एक ऊंचे टील पर महाविद्या का मंदिर है, उसके नीचे एक सुंदर कुण्ड तथा पशुपति महादेव का मंदिर है, जिसके नीचे सरस्वती नाला है। किसी समय यहाँ सरस्वतीजी बहती थीं और गोकर्णेश्वर-महादेव के पास आकर यमुनाजी में मिलती थीं।

एक प्रसंग में यह वर्णन है कि एक सर्प नंदबाबा को रात्रि में निगलने लगा, तब श्रीकृष्ण ने सर्प को लात मारी, जिस पर सर्प शरीर छोड़कर सुदर्शन विद्याधर हो गया। किन्हीं-किन्हीं टीकाकारों का मत है कि यह लीला इन्हीं महाविद्या की है और किन्हीं-किन्हीं का मत है कि अम्बिकावन दक्षिण में है। इससे आगे सरस्वती कुण्ड और सरस्वती का मंदिर और उससे आगे चामुण्डा का मंदिर है।

चामुण्डा से मथुरा की ओर लौटते हुए बीच में अम्बरीष टीला पड़ता है, यहाँ राजा अम्बरीष ने तप किया था। अब उस स्थान पर नीचे जाहरपीर का मठ है और टीले के ऊपर हनुमान्‌जी का मंदिर है। ये सब मथुरा के प्रमुख स्थान हुए। इनके सिवाय और बहुत छोटे-छोटे स्थान हैं। मथुरा के पास नृसिंहगढ़ एक स्थान है, जहाँ नरहरि नाम के एक पहुंचे हुए महात्मा हो गए हैं। इन्होंने 400 वर्ष के होकर अपना शरीर त्याग किया।

प्रत्येक एकादशी और अक्षय नवमी को मथुरा की परिक्रमा होती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-वृंदावन की एक साथ परिक्रमा की जाती है। कोई-कोई इसमें गरुड़-गोविंद को भी शामिल कर लेते हैं। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को रात्रि में परिक्रमा की जाती है, जिसे वनविहार की परिक्रमा कहते हैं।

स्थान-स्थान में गाने-बजाने का तथा पदाकन्दा नाटक का भी प्रबंध रहता है। श्री दाऊजी ने द्वारका से आकर, वसन्त ऋतु के दो मास व्रज में बिताकर जो वनविहार किया था तथा उस समय यमुनाजी को खींचा था, यह परिक्रमा उसी की स्मृति है।

भारतवर्ष के सांस्कृतिक और आधात्मिक गौरव की आधारशिलाऐं इसकी सात महापुरियां हैं। 'गरुडपुराण' में इनके नाम इस क्रम से वर्णित हैं-

हिन्दू धर्म की सप्तपुरी:

 · काशी      मथुरा      द्वारका      काँचीपुरम      अयोध्या      मायानगरी      उज्जयिनी ·  ·

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DWARIKA POPULAR MYTHS:            

(1) Dwarka was considered as Capital at Shree Krishna hile Bet Dwarka as residence. Shree Krishna used to conduct his religious assembly at Dwarka.

(2) Gopi Lake is located 14 kms. A way from Dwarka. Soil of Gopi talav is yellow in color while it is extremely smooth. There is myth that after leaving ' Vruj' , Krishna never gone back to 'Vruj'. During Krishna's Childhood, he played ras leelas many times with gopies (young female inhabitant of Vruj). They traveled from 'Vruj' to Dwarka, to meet Shree Krishna. They after playing Ras Leelas again with Shree Krishna, on night of 'Sharad Purnima', they offered their lives to soil of this land and hence this land has become popular as 'Gopi Talav'.

(3) Rukhmini Temple (Temple one of Shree Krishna's Patranis), is located 2 kms a away from Dwarka There is a myth associated with it once Krishna and Rukhmini went to 'Durvasha rushi' to invite him at Dwarka. He was agreed on the condition that they (Krishna & Rukhmini) have to carry the chariot instead of any animal. Krishna & Rukhmini happily agreed to do so. While driving the chariot, Rukhmini became thirsty. Then Krishna stopped the chariot and made water of Holy River Ganga. 'Durvasha' annoyed by the action and curse Rukhmini to stay away from Shree Krishna Hence Rukhmini temple is located 2 kms. Away from Dwarka's Jagat Mandir.

Airlift technique was adopted for digging within the caisson to dig trenches on the sides of structures. All drawings were prepared underwater.





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गोपीगीत:

श्रीमदभागवतम भगवान श्रीकृष्ण का वांग्मय स्वरुप है। इसीलिए इसके बारह स्कंध उनकी देह के बारह अंग के समान हैं। उनमें से दसवां स्कंध इस देह रुपी महापुराण का हृदय है। इस स्कंध के पाँच अध्याय देह के पञ्च तत्त्व हैं और इन पाँच तत्त्वों में गोपी गीत सबसे महत्वपूर्ण तत्त्व है। दशम स्कंध के २९ से लेकर ३३ तक के इन पाँचों अध्यायों को रासपंचाध्यायी कहा जाता है। 'रास' शब्द का अर्थ है-रस, और ये रस भगवान् कृष्ण स्वयं हैं, 'रसो वै स:'। रासपंचाध्यायी में वंशी का सुर, गोपियों का मिलन, रमण, भगवान् का अंतर्धान, प्राकट्य, रास नृत्य, जलकेलि और वनविहार का चित्रण है। इनमें भगवान् कृष्ण की परम अन्तरंग लीला, निजस्वरूप भूता गोपिकाओं और अल्हादिनीशक्ति श्रीराधाजी के साथ होनेवाली भगवान् की दिव्यातिदिव्य क्रीड़ा भी प्रकट हुई है।

गोपी गीत श्रीमदभागवतम के दसवें स्कंध के रासपंचाध्यायी का ३१ वां अध्याय है। इसमें १९ श्लोक हैं। रास लीला के समय गोपियों को मान हो जाता है। भगवान् उनका मान भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं। उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं। वे आर्त्त स्वर में पुकारती हैं, 'व्रजवासियों के दुःख दूर करने वाले वीरशिरोमणि श्यामसुन्दर! तुम्हारी मंद-मंद मुस्कान की एक उज्जवल रेखा ही तुम्हारे प्रेमीजनों के सारे मान मद को चूर-चूर कर देने के लिए पर्याप्त है। हमारे प्रियसखा! हमसे रूठो मत, प्रेम करो। हम तो तुम्हारी दासी हैं, तुम्हारे चरणों पर निछावर हैं। हम अबलाओं को अपना वह परम सुंदर साँवरा मुखपंकज दिखाओ।' उनकी देह, मन और आत्मा भगवान् के दर्शन की स्मृति में डूब जाते हैं। वे यमुना के तट पर आ जाती हैं और प्रेम में अभिभूत होकर भगवान् के दिव्य रूप और लीलाओं का गुणगान करने लगती हैं। यही विरहगान गोपी गीत है। इसमें प्रेम के अश्रु, मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रूदन है। भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल, सर्वोच्च और अतुलनीय माना गया है।


गोप्य ऊचुः
जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥
शरदुदाशये साधुजातसत्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥2॥
विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसाद्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥3॥
न खलु गोपिकानन्दनो भवानखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥4॥
विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥5॥
व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो जलरुहाननं चारु दर्शय ॥6॥
प्रणतदेहिनांपापकर्शनं तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥7॥
गिरा वल्गुवाक्यया बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
वीर मुह्यतीरधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥8॥
तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥9॥
प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥10॥
चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून् नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥11॥
दिनपरिक्षये नीलकुन्तलैर्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहुर्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥12॥
प्रणतकामदं पद्मजार्चितं धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शंतमं च ते रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥13॥
सुरतवर्धनं शोकनाशनं स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।
इतररागविस्मारणं नृणां वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥14॥
अटति यद्भवानह्नि काननं त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् ।
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥15॥
पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवानतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः ।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥16॥
रहसि संविदं हृच्छयोदयं प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् ।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥17॥
व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् ।
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥18॥
यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित् कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥19॥




Name of MP/MLA   Designation  Tel. Residence  Mobile  

Sh. Jayant Chaudhary   M.P. Mathura (Lokdal)    09818246947  

Sh. Pradeep Mathur  M.L.A. Mathura-Vrindaban (Congress)  2520044,2420150  9415905802, 9412279150  

Sh. Pooran Prakash  M.L.A. Goverdhan (Lokdal)  9412281250  

Sh. Rai Kumar Rawat  M.L.A. Gokul (B.S.P.)  2550044   9415607529, 9412353906  

Sh. Shyam Sunder Sharma   M.L.A. Mant (B.S.P.)    9415905804, 9412727878  

Sh. Laxmi Narayan   M.L.A. Ch'ata (B.S.P.)/Minister of Ag.  2504342,2402444  9415607715, 9412277844  

Sh. Goverdhan Singh  Ex. President-B.S.P.   9760723709, 9410446903  

Sh. Sangh Ratan Sethi   Co-ordinator BSP   9837262103  

Sh. Pratap Singh  President- B.S.P.   9837038144  

Sh. Prem Chand Kardam  Ex. President-B.S.P.    9456684428  

Dr. Jas Ram  Ex. Chairman-Zila Panchayat   9837331390  

Ch. Lekh Raj Singh  M.L.C-BSP   9415903123, 9719406341 

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